कुछ पानी मे तैरती मछलियां सी, कुछ घड़े में पानी सी , कभी सिलाइयों में बुनी ऊन सी , कभी मैं मीन हूँ,
कभी मैं मेष , कभी मैं कुंभ हूँ ।
तराजू में तोलती जीवन की गहराई और ठहराव मैं बन जाती हूँ तुला ।
कभी साथ कदमो को जोड़ के बना लेती हूँ जोड़ , चुभती हुई वेदनाओं को कभी हाथ मे लिए धनुष मैं देती हूँ तोड़।
कह लो चाहे मुझे मिथुन या नाम दे दो मुझे धनु।
मैं महक हूँ आंगन की लेकिन दहाड़ है सिंह सी , जब झपटेगा कोई तो मैं कांटा बन भी चुभ जाती हूँ
कभी कन्या तो कभी सिंह
कभी कर्क हूँ मैं
बढ़ना हो जब जब आगे
रफ्तार मेरी धीमी ना होती
मैं मंज़िलो की तरफ दौड़ती ,
कभी मकर तो कभी वृश्चिक हूँ।
खेतों में हल चलाती, जीवन के हल बताती , कभी वृषभ हूँ मैं।
हर एक मे मैं हूँ
मैं से बनती हैं हम सब ।
अपने अपने हिस्से के संघर्ष में ,
अपनी अपनी चमक बिखराये
हम छू लेगी उस पहाड़ को
जो दिखने में ऊंचा लगता है।
अपने हौंसले, अपने पंखों पे
कर भरोसा अब तो उड़ना है
पंख फैलाये , जीवन को साकार बनाये
अपनो के लिए , अपने को लिए
कुछ तालाबो में कमल खिलाये ….
अपनो के लिए , अपने लिए,, अपनो को लिए।।।।