“रोज़ रोज़ मिलतीं खबरों से अकसर मैं डर जाती हूैं,
कल क्या होने वाला है, इस सोच में पड़ जाती हूँ।
कभी किसी दुल्हन को दहेज़ के लिए जला देते हैं,
कभी किसी अबला का जीवन दुष्ट दरींदे मिटा देते हैं।
कितनी नन्ही कलियों का खिलना अपनों ने रोक है,
कितनी नारियों का सौंदर्या शैतानों ने लूटा है।
क्या होगा ऐसे प्रजातंत्र का इस सोच में पड़ जाती हूँ।
रोज़ रोज़ मिलतीं खबरों से अख़बार मैं डर जाती हूँं,
कल क्या होने वाला है, इस सोच में पड़ जाती हूँ।”
– प्रेरणा अवस्थी